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काफी है या काफी नहीं ?

सुना मगर समझे नहीं , समझा मगर संभले नहीं, संभले मगर रुके नहीं , रुके मगर मुड़े नहीं , मुड़े मगर देखा नहीं , देखा मगर कुछ बोला नहीं , बोला मगर कुछ सुना नहीं , सुना मगर, एक दफा फिर समझे नहीं :) दिल की बस इतनी सी ही कश्मकश है , जीने के लिए काफी है या काफी नहीं....

कहाँ हो तुम ?

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अकेले बैठे जब कभी यादों के पन्ने  पलटता हूँ, यहीं हो तुम बस नज़रें फेर लिया है पल भर के लिए तुमने  तो तुम्हें ढूंढने में वक़्त लग जाता है कभी कभी ।  थोड़ी जो परत  धूल की पड़  जाती है वक़्त के साथ, उसे हटाने में यह सवाल (कहाँ हो तुम ?)  मददगार साबित होता है।  फिर धीरे धीरे तुम्हारी झलक दिखनी शुरू होती है, धीरे धीरे तुम बोलना शुरू करती हो और मैं जब  तुम्हारी आँखों में देखता हूँ तो तुम मुस्कुराती भी हो। पता भी है तुम्हें ? चलो बताते हैं तुम्हें कुछ....  .......  तुम अभी भी वहीँ हो जहाँ तुम्हारी तस्वीर के साथ मैंने अपनी डायरी का एक पन्ना मोड़ रखा है।  तुम अभी भी वहीँ हो जहाँ तुम्हारी दी गयी गुलाब के साथ तुम्हारी खुशबु को छोड़ रखा है हमने, हाँ तुम अभी भी वहीँ हो :) तुम अभी भी वहीँ हो जिस गली में हमने आना छोड़ रखा है, या यूँ कहें कुछ की अपने आप को रोक रखा है।  आज साथ नहीं है हम  मगर वो सूरज जो कई शाम हमने शाम में साथ ढलता देखा है, वो तो अभी भी देखती हो ना, वो तो साथ है ना।  हमने कि...