बारिश..
आज बारिश हुई। दिल्ली के वातावरण में वक़्त गुज़ारते हुए प्रकृति से ऐसी मुलाक़ात मन को छू लेने वाली थी। हवाओं संग उड़ती नन्ही बूंदों से टकरा कर एक अलग ही आनंद की अनुभूति हुई। ये अहसास अपने आप में एक जड़ी बूटी के जैसा काम करता है शायद। कई दिनों, महीनों की इक्कठी थकान साथ में दूर कर देता है ये। रोज़ की ज़िन्दगी, जिसका की लगभग तीन चौथाई हिस्सा 10 X 15 फुट के कमरे में किताबों के साथ ही निकल जाता है। कभी कभी मन बहलाना होता है तो यूँही कुछ गाने सुन लिया करते हैं या पास के मैदान में टहल लेते हैं थोड़ी देर। आज जब यूँही उलझन भरी शाम में अचानक से बारिश की बूंदों की आवाज़ आयी तो ध्यान खींच गया । जब अपने कमरे का गेट खोलता हूँ तो एक अद्भुत नज़ारे से रूबरू होता हूँ। क्या देखता हूँ की इस सुनहरी शाम में कोई अपने घर के बाहर नहीं है, रोज़ की भीड़ आज छुप रखी है कहीं। मुझ जैसे ही कुछ स्टूडेंट हैं, जो बंद कमरे से त्रस्त मानो सच मायने में आज सांस लेने निकले हों। बच्चों का एक छोटा समूह है जो की थोड़ी दूर पे एक एस्बेस्टस की शेड के नीचे अपने अलग ही खेल में लगा है - गीली...