टूटी उम्मीदों का सफर
चाहे जितना नाज़ुक मन हो मेरा पर इन बूंदों का भार अच्छा लगता है ।
आती जाती इन हवाओं के असर से जो तुम थोड़ी फिसलती हो,
तो तुम्हें खोने का डर भी लगता है ।
लेकिन चाहे जितना संभालूं तुमको,
पास सदा नहीं पाऊंगा।
जब खोऊंगा रात को ख़्वाबों में तेरे,
तो कल की पहली किरण संग तुम कहीं गुम हो जाओगी इन हवाओं में।
पर ये सफर जारी रहेगा जैसे जारी है प्रकृति में बारिश,
हाँ जारी रहेगी मेरी ये टूटी उम्मीदों का सफर..... :)
:)
ReplyDeleteबढ़ते रहो, लिखते रहो, पढ़ाते रहो ।
thanks bhai :)
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